Karo Darshan

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पश्चिम बंगाल राज्य में बर्दमान जिले से लगभग 32 किलोमीटर दूर क्षीरग्राम गांव में जुगाड्या शक्तिपीठ स्थित है।पुराणों के अन...
14/05/2024

पश्चिम बंगाल राज्य में बर्दमान जिले से लगभग 32 किलोमीटर दूर क्षीरग्राम गांव में जुगाड्या शक्तिपीठ स्थित है।
पुराणों के अनुसार जहाँ देवी सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे, वहाँ उनके शक्तिपीठ बन गये। ये शक्तिपीठ पावन तीर्थ कहलाये, जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।
जुगाड्या शक्तिपीठ में माता सती का “दाहिने पैर का अंगूठा” गिरा था। यहाँ माता सती को ‘जुगाड्या’ और शिव भगवान को ‘क्षीर खंडक’ कहा जाता है।
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कामाख्‍या देवी तांत्रिकों की मुख्‍य देवी हैं। इन्‍हें भगवान शिव की नववधू के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि यहां प...
13/05/2024

कामाख्‍या देवी तांत्रिकों की मुख्‍य देवी हैं। इन्‍हें भगवान शिव की नववधू के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि यहां पर तांत्रिक बुरी शक्तियाें को बड़ी आसानी से दूर कर देते हैं। यहां के साधुओं के पास एक चमत्‍कारिक शक्ति होती है, जिसका इस्तेमाल वे बड़े ही सोच समझकर करते हैं।कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से ८ किलोमीटर दूर कामाख्या में है।से भी १० किलोमीटर दूर नीलाचल पव॑त पर स्थित है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है [3] व इसका महत् तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। ये अष्टादश महाशक्तिपीठ स्तोत्र के अन्तर्गत है जो आदि शंकराचार्यने लिखा था।देश भर मे अनेकों सिद्ध स्थान है जहाँ माता सुक्ष्म स्वरूप मे निवास करती है प्रमुख महाशक्तिपीठों मे माता कामाख्या का यह मंदिर सुशोभित है हिंगलाज की भवानी, कांगड़ा की ज्वालामुखी, सहारनपुर की शाकम्भरी देवी, विन्ध्याचल की विन्ध्यावासिनी देवी,श्रीबाग(अलिबाग) की श्री पद्माक्षी रेणुका देवी आदि महान शक्तिपीठ श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र एवं तंत्र- मंत्र, योग-साधना के सिद्ध स्थान है। यहाँ मान्यता है, कि जो भी बाहर से आये भक्तगण जीवन में तीन बार दर्शन कर लेते हैं उनके सांसारिक भव बंधन से मुक्ति मिल जाती है ।
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06/05/2024

हिंदू धर्म में 51 शक्तिपीठ है, जिसमें से एक कामाख्या मंदिर को सभी शक्तिपीठ का महापीठ माना गया है. यह मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध और चमत्कारी भी माना जाता है. मान्यता है कि कामाख्या शक्तिपीठ माता सती से जुड़ा है. इस मंदिर में मानी गई सभी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती है!यह मंदिर तांत्रिकों का प्रमुख सिद्धपीठ माना जाता है। माता कामाख्‍या की तांत्रिकों द्वारा विशेष पूजा की जाती है। इसके अलावा मां कामाख्या देवी को हर इच्छा पूरी करने वाली देवी के रूप में भी जाना जाता है। कहते हैं मां कामख्या अपने भक्तों की प्रार्थना व तपस्या से खुश होने पर उनकी हर मुराद पूरी करती है।कामाख्या पीठ भारत का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जो असम प्रदेश में है। कामाख्या देवी का मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलाचल पर्वत पर स्थित है। कामाख्या देवी का मन्दिर पहाड़ी पर है, अनुमानत: एक मील ऊँची इस पहाड़ी को नील पर्वत भी कहते हैं। कामरूप का प्राचीन नाम धर्मराज्य था। वैसे कामरूप भी पुरातन नाम ही है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र-सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम की नयी राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलाचल पर्वतमालाओं पर स्थित माँ भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है।
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भ्रामरी नाम से एक शक्तिपीठ पश्‍चिम बंगाल के त्रिस्रोता में भी स्थित है। पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के बोडा मंडल के सालबा...
05/05/2024

भ्रामरी नाम से एक शक्तिपीठ पश्‍चिम बंगाल के त्रिस्रोता में भी स्थित है। पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम स्‍थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायां पैर गिरा था। इसकी शक्ति है भ्रामरी और शिव को अंबर और भैरवेश्वर कहते हैं। भ्रामरी को मधुमक्खियों की देवी के रूप में जाना जाता है।
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भवानी चट्टल शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। बांग्लादेश में चिट्टागौंग (चटगांव) जिला से 38 किलोमीटर दूर सीताकुंड स्ट...
04/05/2024

भवानी चट्टल शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। बांग्लादेश में चिट्टागौंग (चटगांव) जिला से 38 किलोमीटर दूर सीताकुंड स्टेशन के निकट समुद्रतल से 350 मीटर की ऊंचाई पर चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दायीं भुजा गिरी थी। इसकी शक्ति भवानी है और भैरव को चंद्रशेखर कहते हैं।
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माता का यह मंदिर त्रिपुरा राज्य के उदयपुर की पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर भारत के 51 महापीठों में से एक है और यहां माता ...
03/05/2024

माता का यह मंदिर त्रिपुरा राज्य के उदयपुर की पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर भारत के 51 महापीठों में से एक है और यहां माता का दायां पैर गिरा था। यहां मां भगवती को त्रिपुर सुंदरी और उनके साथ विराजमान भैरव को त्रिपुरेश के नाम से जाना जाता है। माता के इस पीठ को कूर्भपीठ भी कहा जाता है।
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मंडल चंडिका शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में स्थापित है. मंगल चंडिका शक्तिपीठ कोग्राम में स्थित है जिसे उज्जयनी...
02/05/2024

मंडल चंडिका शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में स्थापित है. मंगल चंडिका शक्तिपीठ कोग्राम में स्थित है जिसे उज्जयनी पीठ कहा जाता है. मंदिर की गुस्कर रेलवे स्टेशन से दूरी 16 किलोमीटर है. यहां माता सती की दाहिनी कलाई कट कर गिरी थी!इस मंदिर में देवी का नाम मंगल चंडी है और उन्हें देवी दुर्गा के रूप में दर्शाया गया है। मंदिर की स्थापना सबसे पहले माता की बाईं कोहनी को मूर्ति के नीचे एक सोने के कटोरे में रखकर की गई थी। बाद में यहां कस्ती पत्थर की मूर्ति स्थापित की गई।
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बहुला शक्तिपीठ वह जगह है जहां पर देवी मां की बायीं भुजा गिरी थी। पश्चिम बंगाल के कटवा जंक्शन के निकट बर्धमान में स्थित ब...
01/05/2024

बहुला शक्तिपीठ वह जगह है जहां पर देवी मां की बायीं भुजा गिरी थी। पश्चिम बंगाल के कटवा जंक्शन के निकट बर्धमान में स्थित बहुला शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह पवित्र स्थल मां दुर्गा और भगवान शिव को समर्पित है। यहां की शक्ति बहुला तथा भैरव भीरुक हैं। पश्चिम बंगाल के हावड़ा से यह 145 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। बहुला शक्तिपीठ को भारत के ऐतिहासिक स्थलों में से एक माना जाता है।
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नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ मंदिर, जहां माता का मस्तक या गंडस्थल अर्थात कनपटी गिरी ...
30/04/2024

नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ मंदिर, जहां माता का मस्तक या गंडस्थल अर्थात कनपटी गिरी थी। इसकी शक्ति है गण्डकी चण्डी और शिव या भैरव चक्रपाणि हैं। इस शक्तिपीठ में सती के "दक्षिणगण्ड" (कपोल) का पतन हुआ था। यह मंदिर पोखरा से 125 किलोमीटर दूर है।
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माँ बिराजा मंदिर एक ऐतिहासिक हिंदू मंदिर है जो भारत के ओडिशा के जाजपुर (भुवनेश्वर से लगभग 125 किलोमीटर (78 मील) उत्तर मे...
29/04/2024

माँ बिराजा मंदिर एक ऐतिहासिक हिंदू मंदिर है जो भारत के ओडिशा के जाजपुर (भुवनेश्वर से लगभग 125 किलोमीटर (78 मील) उत्तर में) में स्थित है। बिराजा मंदिर महत्वपूर्ण महाशक्तिपीठों में से एक है। यहां मुख्य मूर्ति दुर्गा देवी को गिरिजा (विराजा) और भगवान शिव को जगन्नाथ के रूप में पूजा जाता है।मां बिरजा अपने पूर्ण ब्रह्मांडीय त्रिमूर्ति रूप त्रिशक्ति यानी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में प्रतिष्ठित हैं। मान्यता है कि मां बिरजा का जन्म पौष यानी त्रिवेणी अमावस्या के दिन हुआ है। उस दिन गायत्री मंत्रों से मां के विशेष अभिषेक परंपरा है।स्कंद, वायु, ब्रह्मांड, ब्रह्म पुराण और महाभारत में इस 18वें शक्तिपीठ में देवी के गिरिजा नाम का जिक्र मिलता है।

दाक्षायणी Maa तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के निकट एक पाषाण शिला पर माता की बायीं हथेली का निपात हुआ था। इसकी शक...
28/04/2024

दाक्षायणी Maa तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के निकट एक पाषाण शिला पर माता की बायीं हथेली का निपात हुआ था। इसकी शक्ति है दाक्षायनी और भैरव अमर हैं। यह भी कहा जाता है कि यहां पर माता का दायां हाथ गिरा था। कैलास शक्तिपीठ मानसरोवर का गौरवपूर्ण वर्णन हिन्दू, बौद्ध, जैन धर्मग्रंथों में मिलता है।
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गुह्येश्वरी शक्तिपीठमां का यह मंदिर पशुपतिनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर बागमती नदी के किनारे स्थित है। धार्मिक मान्यताओं क...
27/04/2024

गुह्येश्वरी शक्तिपीठ
मां का यह मंदिर पशुपतिनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर बागमती नदी के किनारे स्थित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यहां माता दोनों जानु (घुटने) गिरे थे। इस शक्तिपीठ की शक्ति महमाया और भगवान शिव भैरव कपाल रूप में मौजूद हैं। इस मंदिर के छिद्र में निरंतर जल बहता रहता है।
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माउंट आबू से 45 किमी. की दूरी पर अंबा माता का प्राचीन शक्तिपीठ है। यह मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा पर स्थित है। इसमे...
26/04/2024

माउंट आबू से 45 किमी. की दूरी पर अंबा माता का प्राचीन शक्तिपीठ है। यह मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा पर स्थित है। इसमें भवानी की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि यहां पर एक श्रीयंत्र स्थापित है। उसे इस ढंग से सजाया जाता है कि देखने वालों को उसमें मां का विग्रह नजर आता है। खास बात यह है कि यह श्रीयंत्र सामान्य आंखों से दिखाई नहीं देता और न ही इसका फोटो लिया जा सकता है। इसकी पूजा केवल आंखों पर पट्टी बांधकर ही की जाती है। मां भवानी के 51 शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर के प्रति मां के भक्तों में अपार श्रद्धा है। कहा जाता है कि यहां मां सती का ह्दय गिरा था, जिसका उल्लेख तंत्र चूड़ामणि में भी मिलता है।🙏

पंजाब के जालंधर में उत्तर की तरफ रेलवे स्टेशन से सिर्फ 1 किमी की दूरी पर मां भगवती का शक्तिपीठ त्रिपुर मालिनी मां है| इस...
25/04/2024

पंजाब के जालंधर में उत्तर की तरफ रेलवे स्टेशन से सिर्फ 1 किमी की दूरी पर मां भगवती का शक्तिपीठ त्रिपुर मालिनी मां है| इसके अलावा यह मंदिर देवी तालाब मंदिर नाम से जाना जाता है|
इस मंदिर के बारें में मान्यता है कि मां सती का इस जगह बाया वक्ष(स्तन) गिरा था। जिसके बाद से मां यहां पर शक्ति 'त्रिपुरमालिनी' तथा भैरव 'भीषण' के रुप में विराजमान है।मां के दर्शन के लिए हजारो भक्त दूर-दूर से यहां आते है। मंदिर का शिखर सोने से बनाया गया है| समय समय पर मंदिर परिसर में मां के जगरातें और नवरात्रों में बड़ी धूम-धाम से मेला लगता है। उस समय इस मंदिर को बहुत सारी मन मोहक झांकिया से सजाया जाता है।

हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर, कांगड़ा जिले में कालीधर पहाड़ी पर मौजूद है। 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ ...
24/04/2024

हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर, कांगड़ा जिले में कालीधर पहाड़ी पर मौजूद है। 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ को ज्वालामुखी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोग तो इसे जाता वाली मां का मंदिर के रूप में भी जानते हैं।हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर, कांगड़ा जिले में कालीधर पहाड़ी पर मौजूद है।
51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ को ज्वालामुखी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोग तो इसे जाता वाली मां का मंदिर के रूप में भी जानते हैं।दिलचस्प बात तो ये है कि मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को प्राप्त है। माना जाता है कि इसी जगह पर माता सती के अंगों में से उनकी जीभ गिरी थी।
चलिए आपको इस मंदिर से जुड़ी कुछ ऐसी रोचक बातें बताते हैं, जिसके बारे में आपको शायद ही पता हो।हिमाचल के इस मंदिर में सदियों से 9 प्राकृतिक ज्वालाएं जल रही हैं, इनका रहस्य जानने के लिए पिछले कई सालों से वैज्ञानिक रिसर्च करने में जुटे हुए हैं, लेकिन नौ किमी खुदाई करने के बाद आज तक उन्हें वो जगह नहीं मिल पाई, जहां प्राकृतिक गैस निकलती हो।आपको बता दें, पृथ्वी से नौ अलग-अलग जगहों से ज्वाला निकल रही है, जिसके ऊपर मंदिर बना दिया गया है।
इन नौ ज्योतियों को अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी, महाकाली के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर निर्माण सबसे पहले राजा भूमि चंद द्वारा करवाया गया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का निर्माण पूरा किया था।
इस मंदिर में प्राकृतिक रूप से निकलने वाली ज्वालाओं का रहस्य न तो सम्राट अकबर जान पाए थे और न ही अंग्रेजों को इसके बारे में कोई जानकारी प्राप्त हो सकी। ज्वाला देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा शहर से 30 किमी की दूरी पर मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर की खोज पांडवों ने ही की थी।आजादी के बाद वैज्ञानिकों ने मंदिर में जल रही ज्वालाओं के राज को जानने की काफी कोशिश की, लेकिन आखिर में उन्हें निराशा ही हाथ लगी। ऐसा माना जाता है कि अंग्रेज भूमि तल से निकलने वाली ज्वाला का इस्तेमाल करना चाहते थे।
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हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जयंती का त्योहार मनाया जाता है. हनुमान जयंती पूरे देश में बड़े...
23/04/2024

हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जयंती का त्योहार मनाया जाता है. हनुमान जयंती पूरे देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. ज्योतिषियों की मानें तो, हनुमान जयंती के दिन हनुमान स्तुति का पाठ करना चाहिए, जिससे जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और हर मनोकामना पूरी होती है!हनुमान जयंती के दिन हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान के सामने घी या फिर सरसों का दीपक जला दें और 5-11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें!🙏

माँ महामाया शक्ति पीठ भारत के जहांगीरपुर नगर, जम्मू और कश्मीर राज्य में स्थित है।   🙏
23/04/2024

माँ महामाया शक्ति पीठ भारत के जहांगीरपुर नगर, जम्मू और कश्मीर राज्य में स्थित है।
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माँ करवीपुर शक्ति पीठ एक प्रमुख तीर्थस्थल है जो भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। इस स्थान पर माँ जगदम्बा का प्रस...
22/04/2024

माँ करवीपुर शक्ति पीठ एक प्रमुख तीर्थस्थल है जो भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। इस स्थान पर माँ जगदम्बा का प्रसाद माना जाता है, जो माँ पार्वती के रूप में प्रसिद्ध हैं।

करवीपुर शक्ति पीठ का इतिहास महत्वपूर्ण है और यह स्थल माँ सती के पर्वत के उन्नीसवें खंड के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि यहाँ पर माँ के नाभि का चिन्ह है, जो पूरे समुद्र की शक्ति से युक्त है।

यहाँ पर आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए माँ की कृपा की प्रार्थना करते हैं और अपने जीवन को शुभ बनाने के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यहाँ पर माँ की पूजा के लिए विशेष पूजा विधि और रीति-रिवाज हैं जो श्रद्धालुओं को ध्यान में लाने के लिए सहायक होती हैं।

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Unit-233, Vipul Trade Centre, Sohna Road, Sector/48

122018

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