24/04/2024
हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर, कांगड़ा जिले में कालीधर पहाड़ी पर मौजूद है। 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ को ज्वालामुखी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोग तो इसे जाता वाली मां का मंदिर के रूप में भी जानते हैं।हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर, कांगड़ा जिले में कालीधर पहाड़ी पर मौजूद है।
51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ को ज्वालामुखी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोग तो इसे जाता वाली मां का मंदिर के रूप में भी जानते हैं।दिलचस्प बात तो ये है कि मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को प्राप्त है। माना जाता है कि इसी जगह पर माता सती के अंगों में से उनकी जीभ गिरी थी।
चलिए आपको इस मंदिर से जुड़ी कुछ ऐसी रोचक बातें बताते हैं, जिसके बारे में आपको शायद ही पता हो।हिमाचल के इस मंदिर में सदियों से 9 प्राकृतिक ज्वालाएं जल रही हैं, इनका रहस्य जानने के लिए पिछले कई सालों से वैज्ञानिक रिसर्च करने में जुटे हुए हैं, लेकिन नौ किमी खुदाई करने के बाद आज तक उन्हें वो जगह नहीं मिल पाई, जहां प्राकृतिक गैस निकलती हो।आपको बता दें, पृथ्वी से नौ अलग-अलग जगहों से ज्वाला निकल रही है, जिसके ऊपर मंदिर बना दिया गया है।
इन नौ ज्योतियों को अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी, महाकाली के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर निर्माण सबसे पहले राजा भूमि चंद द्वारा करवाया गया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का निर्माण पूरा किया था।
इस मंदिर में प्राकृतिक रूप से निकलने वाली ज्वालाओं का रहस्य न तो सम्राट अकबर जान पाए थे और न ही अंग्रेजों को इसके बारे में कोई जानकारी प्राप्त हो सकी। ज्वाला देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा शहर से 30 किमी की दूरी पर मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर की खोज पांडवों ने ही की थी।आजादी के बाद वैज्ञानिकों ने मंदिर में जल रही ज्वालाओं के राज को जानने की काफी कोशिश की, लेकिन आखिर में उन्हें निराशा ही हाथ लगी। ऐसा माना जाता है कि अंग्रेज भूमि तल से निकलने वाली ज्वाला का इस्तेमाल करना चाहते थे।
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