14/04/2024
क्या कभी आपने ऐसा सोचा है; आजीविका!!
चेलुसन जैसी जगह पर अगर कोई स्थानीय व्यक्ति प्रत्येक दिन ₹100 की लाभांश कमाता है, यानी कि कोई भी कार्य करके ₹100 कमा लेता है , मासिक ₹3000 तो वह सबसे सुखी इंसान हैं। परंतु आज गांव की भूमि पर किसी भी कार्य के द्वारा प्रत्येक दिन बचत के रूप में ₹100 भी नहीं कमा पाता है ,यह तो रही एक व्यक्ति की कहानी परंतु ठीक शादीशुदा व्यक्ति की मासिक कमाई 7000 से 8000 रुपए तो होनी ही चाहिए तभी वह व्यक्ति बचे हुए रुपए में एक या दो खेतों को आबाद करके वह अपनी आर्थिक भार व्यवस्था को मजबूत कर सकता है।
परंतु यह कहानी यही पूरी नहीं होती आज के बदलते हुए दौर की जरूरत है प्रत्येक व्यक्ति के आगे मुंह खोल कर खड़ी होती हैं, बच्चों की फीस,सामान्य मोबाइल का बिल, बिजली का बिल, गैस का बिल, साथ ही साथ आधुनिक बच्चों की डिमांड चाऊमीन पिज़्ज़ा जैसे खाद्य पदार्थ आदि।
सामान्य ग्रामीण व्यक्ति अपनी आजीविका तथा आधुनिक आवश्यकता के बीच में सामंजस्य से परिपूर्ण नहीं कर पा रहा, वह हमेशा चिंतित सा रहता है। उस पर कुछ सामान्य व्यक्ति की कार्यक्रम जैसे बच्चों की शादी, फिर स्वास्थ्य संबंधी रोगों के निदान तथा दवाई आदि का अतिरिक्त बोझ भी बना रहता है।
गांव में रहने वाले युवा लड़कों के लिए दुल्हन तक स्थानीय लोग नहीं देते हैं, उनका कहना है कि हमारी बेटी हमेशा घास एवं पैदल ही चलेगी क्या? तथा साथ ही साथ यहां की लड़कियों की शहरी लोग भी नौकरी का अनुभव ना होने के कारण, खाली घरेलू काम के लिए उनको उपयुक्त नहीं समझते हैं।
आज से 30 साल पहले चेलुसन मैं गिनी चुनी दुकानें थी, आस-पास के गांव हमेशा चेलुसन की मार्केट पर निर्भर रहती थी, परंतु आज लगभग प्रत्येक गांव में स्थानीय व्यक्तियों के द्वारा छोटी मोटी दुकानें चलाई जा रही हैं, अत्यधिक सड़कों के द्वारा जुड़ाव एवं निजी वाहनों की सुविधा हो जाने के कारण व्यक्ति विशेष बड़े शहरों से ही खरीदारी एवं समानांतर व्यवस्था बना देता है। आज लगभग 55 दुकानें शहर में उपस्थित होने पर भी व्यक्तियों की आवागमन लगभग 60 लोगों का ही हो पाता है जो खरीदारी के उद्देश्य से चेलुसन की मार्केट में आते हैं, सामान्यता स्थानीय दुकानों में भीड़ भाड़ तो देखी जा सकती है परंतु बिक्री का सामंजस्य उतना नहीं हो पाता है। स्थानीय लोगों के परिवारों में जहां सक्षम महिला है, उन परिवारों में थोड़ा दूध एवं घास का परिपूर्ण होने के कारण वह लोग अभी भी खेती के द्वारा थोड़ी बहुत स्थानीय सब्जियों का निर्वहन कर पाते हैं।
आज की आधुनिक दृष्टि से देखा जाए तो जहां एक और हम 2024 में अपना जीवन यापन कर रहे हैं वहीं दूसरी और गांव और भी निढाल होते जा रहे हैं, अपनी संस्कृति को बचाने का दायित्व सिर्फ गांव का ही होता है इस वजह से भी अतिरिक्त बोझ हमेशा स्थानीय लोगों पर बना रहता है।
कुछ परिवारों में कुछ व्यक्ति विशेष शारीरिक रूप से मजबूत होने के कारण पशुपालन के द्वारा भी आजीविका का निर्वहन करते हैं, परंतु यह व्यवस्था भी लगातार नहीं चलती है। समय अनुसार छिपी बेरोजगारी का सामना इस व्यवसाय को भी हमेशा बना रहता है।
गांव की व्यवस्था में खान पीन का निम्न स्तर होने के कारण स्थानीय लोग शारीरिक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं, एवं चिंता ग्रस्त होने के कारण वह लोग उन कामों को करने में सक्षम ही नहीं हो पा रहे हैं जिसके लिए हमारी भौगोलिक अवस्था उपलब्ध संसाधन करवाती है।
हां थोड़ा बहुत व्यवसायिक सोच के साथ आपातकालीन सर्विस या दुकान देने वाले व्यवसाय थोड़ा यहां पर गांव की व्यवस्था में सफल माने जाते हैं ,क्योंकि वह सभी लोग बिना भुगतान के कार्य करेंगे ही नहीं?
आज स्थानीय व्यक्ति अपना संपर्क अन्य गांव से भी साथ नहीं पाता अन्य गांव के साथ पैदल चलने वाले रास्ते इतना कठिन हो गए हैं कि हमेशा बाघ भालू का खतरा बना रहता है, नहीं तो खाद्य पदार्थों की व्यवस्था अन्य गांव से भी विनिमय के माध्यम से चल सकती थी। परंतु कहानी यही है, कि कौन आए कौन जाए उससे बढ़िया भूखे रह जाए!!
जो व्यक्ति विशेष थोड़ी बहुत पेंशन की व्यवस्था पर निर्भर है वह भी यहां पर थोड़ा पनपने में लाभप्रद समझता है। परंतु उस अवस्था में उसके लिए बाजारी व्यवस्था से नवीन खरीदारी एवं शौक में कमी पाई जाती है।
स्थानीय क्षेत्रों में बढ़ते हुए शराब का प्रचलन एवं महिलाओं की कुंठा भाव से जीवन के पहलू को हमेशा कमजोर बना देता है।
शेष सर्वज्ञ ईश्वर ही है, उसी के हाथों हर व्यक्ति का कल्याण निहित है।
नमः शिवाय
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