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The city served as the capital of the Hindu kingdom of Kosala (Kaushal), the court of the great king Dasaratha, the 63rd monarch of the Solar line in descent from Vivaswan or the Sun God.

29/10/2024
24/04/2024

रामा रामा

08/04/2024

जय जय श्री राम

15/12/2023

जय श्री राम !!!

यहाँ रामलला विराजेंगे . जय श्री राम
10/12/2023

यहाँ रामलला विराजेंगे . जय श्री राम

22/10/2022

Jai Shri Ram

11/09/2022

गणेश विसर्जन :- ( गोबर गणेश )

यह यथार्थ है कि जितने लोग भी गणेश विसर्जन करते हैं उन्हें यह बिल्कुल पता नहीं होगा कि यह गणेश विसर्जन क्यों किया जाता है और इसका क्या लाभ है ??
हमारे देश में हिंदुओं की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि देखा देखी में एक परंपरा चल पड़ती है जिसके पीछे का मर्म कोई नहीं जानता लेकिन भयवश वह चलती रहती है ।

आज जिस तरह गणेश जी की प्रतिमा के साथ दुराचार होता है , उसको देख कर अपने हिन्दू मतावलंबियों पर बहुत ही ज्यादा तरस आता है और दुःख भी होता है ।

शास्त्रों में एकमात्र गौ के गोबर से बने हुए गणेश जी या मिट्टी से बने हुए गणेश जी की मूर्ति के विसर्जन का ही विधान है ।

गोबर से गणेश एकमात्र प्रतीकात्मक है माता पार्वती द्वारा अपने शरीर के उबटन से गणेश जी को उत्पन्न करने का ।

चूंकि गाय का गोबर हमारे शास्त्रों में पवित्र माना गया है इसीलिए गणेश जी का आह्वाहन गोबर की प्रतिमा बनाकर ही किया जाता है ।

इसीलिए एक शब्द प्रचलन में चल पड़ा :- "गोबर गणेश"
इसिलिए पूजा , यज्ञ , हवन इत्यादि करते समय गोबर के गणेश का ही विधान है । जिसको बाद में नदी या पवित्र सरोवर या जलाशय में प्रवाहित करने का विधान बनाया गया ।

अब आईये समझते हैं कि गणेश जी के विसर्जन का क्या कारण है ????

भगवान वेदव्यास ने जब शास्त्रों की रचना प्रारम्भ की तो भगवान ने प्रेरणा कर प्रथम पूज्य बुद्धि निधान श्री गणेश जी को वेदव्यास जी की सहायता के लिए गणेश चतुर्थी के दिन भेजा ।
वेदव्यास जी ने गणेश जी का आदर सत्कार किया और उन्हें एक आसन पर स्थापित एवं विराजमान किया ।
( जैसा कि आज लोग गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की प्रतिमा को अपने घर लाते हैं )

वेदव्यास जी ने इसी दिन महाभारत की रचना प्रारम्भ की या "श्री गणेश" किया ।
वेदव्यास जी बोलते जाते थे और गणेश जी उसको लिपिबद्ध करते जाते थे । लगातार दस दिन तक लिखने के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन इसका उपसंहार हुआ ।

भगवान की लीलाओं और गीता के रस पान करते करते गणेश जी को अष्टसात्विक भाव का आवेग हो चला था जिससे उनका पूरा शरीर गर्म हो गया था और गणेश जी अपनी स्थिति में नहीं थे ।

गणेश जी के शरीर की ऊष्मा का निष्कीलन या उनके शरीर की गर्मी को शांत करने के लिए वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर गीली मिट्टी का लेप किया । इसके बाद उन्होंने गणेश जी को जलाशय में स्नान करवाया , जिसे विसर्जन का नाम दिया गया ।

बाल गंगाधर तिलक जी ने अच्छे उद्देश्य से यह शुरू करवाया पर उन्हें यह नहीं पता था कि इसका भविष्य बिगड़ जाएगा ।
गणेश जी को घर में लाने तक तो बहुत अच्छा है , परंतु विसर्जन के दिन उनकी प्रतिमा के साथ जो दुर्गति होती है वह असहनीय बन जाती है ।

आजकल गणेश जी की प्रतिमा गोबर की न बना कर लोग अपने रुतबे , पैसे , दिखावे और अखबार में नाम छापने से बनाते हैं ।
जिसके जितने बड़े गणेश जी , उसकी उतनी बड़ी ख्याति , उसके पंडाल में उतने ही बड़े लोग , और चढ़ावे का तांता ।
इसके बाद यश और नाम अखबारों में अलग ।

सबसे ज्यादा दुःख तब होता है जब customer attract करने के लिए लोग DJ पर फिल्मी अश्लील गाने और नचनियाँ को नचवाते हैं ।

आप विचार करके हृदय पर हाथ रखकर बतायें कि क्या यही उद्देश्य है गणेश चतुर्थी या अनंत चतुर्दशी का ?? क्या गणेश जी का यह सम्मान है ??
इसके बाद विसर्जन के दिन बड़े ही अभद्र तरीके से प्रतिमा की दुर्गति की जाती है ।
वेदव्यास जी का तो एक कारण था विसर्जन करने का लेकिन हम लोग क्यों करते हैं यह बुद्धि से परे है ।
क्या हम भी वेदव्यास जी के समकक्ष हो गए ??? क्या हमने भी गणेश जी से कुछ लिखवाया ?
क्या हम गणेश जी के अष्टसात्विक भाव को शांत करने की हैसियत रखते हैं ??????????

गोबर गणेश मात्र अंगुष्ठ के बराबर बनाया जाता है और होना चाहिए , इससे बड़ी प्रतिमा या अन्य पदार्थ से बनी प्रतिमा के विसर्जन का शास्त्रों में निषेध है ।

और एक बात और गणेश जी का विसर्जन बिल्कुल शास्त्रीय नहीं है ।
यह मात्र अपने स्वांत सुखाय के लिए बिना इसके पीछे का मर्म , अर्थ और अभिप्राय समझे लोगों ने बना दिया ।

एकमात्र हवन , यज्ञ , अग्निहोत्र के समय बनने वाले गोबर गणेश का ही विसर्जन शास्त्रीय विधान के अंतर्गत आता है ।

प्लास्टर ऑफ paris से बने , चॉकलेट से बने , chemical paint से बने गणेश प्रतिमा का विसर्जन एकमात्र अपने भविष्य और उन्नति के विसर्जन का मार्ग है ।
इससे केवल प्रकृति के वातावरण , जलाशय , जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र , भूमि , हवा , मृदा इत्यादि को नुकसान पहुँचता है ।

इस गणेश विसर्जन से किसी को एक अंश भी लाभ नहीं होने वाला ।
हाँ बाजारीकरण , सेल्फी पुरुष , सेल्फी स्त्रियों को अवश्य लाभ मिलता है लेकिन इससे आत्मिक उन्नति कभी नहीं मिलेगी ।

इसीलिए गणेश विसर्जन को रोकना ही एकमात्र शास्त्र अनुरूप है ।
चलिए माना कि आप अज्ञानतावश डर रहे हैं कि इतनी प्रख्यात परंपरा हम कैसे तोड़ दें तो करिए विसर्जन । लेकिन गोबर के गणेश को बनाकर विसर्जन करिए और उनकी प्रतिमा 1 अंगुष्ठ से बड़ी नहीं होनी चाहिए ।

मुझे पता है मेरे इस पोस्ट से कुछ कट्टर झट्टर बनने वालों को ठेस लगेगी और वह मुझे हिन्दू विरोधी घोषित कर देंगे ।

पर मैं अपना कर्तव्य निभाऊँगा और सही बातों को आपके सामने रखता रहूँगा ।
बाकी का - सोई करहुँ जो तोहीं सुहाई ।

25/08/2022

अवश्य पढ़ें.....

अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा महल में झाड़ू लगा रही थी तो द्रौपदी उसके समीप गई उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली, "पुत्री भविष्य में कभी तुम पर दुख, पीड़ा या घोर से घोर विपत्ति भी आए तो कभी अपने किसी नाते-रिश्तेदार की शरण में मत जाना सीधे भगवान की शरण में जाना

उत्तरा हैरान होते हुए माता द्रौपदी को निहारते हुए बोली:-आप ऐसा क्यों कह रही हैं माता?" द्रौपदी बोली:-क्योंकि यह बात मेरे ऊपर भी बीत चुकी है। जब मेरे पांचों पति कौरवों के साथ जुआ खेल रहे थे, तो अपना सर्वस्व हारने के बाद मुझे भी दांव पर लगाकर हार गए। फिर कौरव पुत्रों ने भरी सभा में मेरा बहुत अपमान किया

मैंने सहायता के लिए अपने पतियों को पुकारा मगर वो सभी अपना सिर नीचे झुकाए बैठे थे। पितामह भीष्म, द्रोण, धृतराष्ट्र सभी को मदद के लिए पुकारती रही मगर किसी ने भी मेरी तरफ नहीं देखा, वह सभी आंखे झुकाए आंसू बहाते रहे

फिर मैने भगवान श्रीद्वारिकाधीश को पुकारा:-हे प्रभु अब आपके सिवाय मेरा कोई भी नहीं है। भगवान तुरंत आए और मेरी रक्षा करी। इसलिए वेटी जीवन में जब भी संकट आये आप भी उन्हें ही पुकारना

जब द्रौपदी पर ऐसी विपत्ति आ रही थी तो द्वारिका में श्रीकृष्ण बहुत विचलित हो रहे थे। क्योंकि उनकी सबसे प्रिय भक्त पर संकट आन पड़ा था

रूकमणि उनसे दुखी होने का कारण पूछती हैं तो वह बताते हैं मेरी सबसे बड़ी भक्त को भरी सभा में नग्न किया जा रहा है। रूकमणि बोलती हैं, "आप जाएं और उसकी मदद करें। "श्रीकृष्ण बोले," जब तक द्रोपदी मुझे पुकारेगी नहीं मैं कैसे जा सकता हूं। एक बार वो मुझे पुकार लें तो मैं तुरंत उसके पास जाकर उसकी रक्षा करूंगा

तुम्हें याद होगा जब पाण्डवों ने राजसूर्य यज्ञ करवाया तो शिशुपाल का वध करने के लिए" मैंने अपनी उंगली पर चक्र धारण किया तो उससे मेरी उंगली कट गई

उस समय "मेरी सभी 16 हजार 108 पत्नियां वहीं थी कोई वैद्य को बुलाने भागी तो कोई औषधि लेने चली गई" मगर उस समय "मेरी इस भक्त ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और उसे मेरी उंगली पर बांध दिया । आज उसी का ऋण मुझे चुकाना है लेकिन जब तक वो मुझे पुकारेगी नहीं मैं नहीं जाऊंगा

अत: द्रौपदी ने जैसे ही भगवान कृष्ण को पुकारा प्रभु तुरंत ही दौड़े चले गये

हमारे जीवन में भी कही संकट आते रहते है प्रभु-स्मरण, उनके प्रति किया "सत्-कर्म" हमारी सहयाता के लिए भगवान को बिवस कर देता है और तुरन्त संकट टल जाता है
जय श्री कृष्ण 🙏🙏

03/08/2022

⚜️कटू सत्य ⚜️
🛕📿पंडित जी की सत्य घटना

पंडित जी गांव मे एक यजमान के यहॉ सत्यनारायण कथा करके घर आए , और पत्नी सावित्री से बोले जरा एक गिलास पानी पिलाना । तभी पंडित जी की छोटी बेटी व बेटा दौडते हुए आए और बोले पापा हमारे लिए क्या लेकर आए तो पंडित जी ने थैली मे रखी आटे की प्रसाद और कुछ फल बच्चो को देते हुए कहा बेटा ये लो प्रसाद तुम्हारे लिए , तो बेटी बोली पापा मिठाई नही लाए पंडित जी बोले बेटा मिठाई यजमान लाए तो थे पर इतनी की सिर्फ वो व उनके घरवाले खा सके हमारे लिए तो सिर्फ आटे की प्रसाद बची ये खाऔ अगली बार मिठाई ले आऊंगा । तभी बेटा बोला पापा हमारे मास्टर जी कह रहे थे जल्दी स्कूल की फिस ( शुल्क ) भर दो नही तो परिक्षा मे नही बैठने देंगे । दुखी मन से पंडित जी ने कहा बेटा मास्टरजी से कहना जल्दी भर देगे । तभी पंडिताईन ( पत्नी ) बोली सुनते हो दुर के रिश्तेदार के यहॉ शादी है हमे उनको कुछ तो देना चाहिए न यदि नही देगे तो कल को हमारे बच्चों की शादी मे नही आएगे वो ।

पंडित जी की आंखो मे आंसु आ गए और बोले पंडिताईन तुम जानती हो पुरोहित कर्म करके मे तुम सबकी इच्छाएँ पुरी नही कर पा रहा हुं । आज सत्यनारायण कथा करवाई बदले मे 101 रुपये दक्षिणा दि और पचास रुपये चढावे मे आए अब तुम ही बताऔ इन 150 रुपये बेटे की स्कूल फिस भरु या बेटी को कपडे दिलवाऊ या रिश्तेदार की शादी के लिए सामान खरिदू ?? आज पैसा होता तो बेटी को सरकारी स्कुल मे नही पढा रहा होता बल्कि बेटे के साथ प्राईवेट स्कुल मे पढाता । ब्राह्मण कुल मे पैदा हुआ हुं यदि अपना पुरोहित कर्म छोडु तो पुर्वजो की कीर्ति को ठेस पहुंचे और ये सब ही करता रहुं तो बच्चो के भविष्य को बिगाडु ।

पंडिताईन आज हमारा दुर्भाग्य ये है कि हम गरीब है⁉️
फिर भी लोग मुझसे कहते है जब मै पुजा करवाकर घर आता हुं तो कि यजमान को कितने का चुना लगाया । ये तो प्रभु जानते हे मैने चुना लगाया या नही लगाया । हम ब्राह्मण हैं तो हमे राशन नही मिलता , ब्राह्मण हैं तो मेरे बच्चौ को छात्रवत्ती ( स्कालरशिप ) नही मिलती , ब्राह्मण हैं तो मेरे बच्चो को निशुल्क किताबे नही मिलती , ब्राह्मण हैं इसलिए मेरे बच्चे की स्कुल फिस ज्यादा है । पंडिताईन हम ब्राह्मण कुल मे पैदा हुए क्या ये हमारा दोष है ??? ब्राह्मण गरिब नही हो सकता ??? पता नही हम ब्राह्मणो को सब लुटेरा क्यो समझते है ?? हमने किसका पैसा लुटा है ?? हे प्रभु हम कब तक ऐसे दयनिय स्थिती मे रहेगे ।

पंडिताईन बोली आप चिंता मत करिए ब्राह्मणो के हितैषी भगवान जानते है हमने कभी गलत नही किया एक न एक दिन हमारा भी भला होगा आप रोइए मत मेरे पायल गिरवी रखकर बेटे की फिस भर दीजिए और शादी का सामान ले आइए , इतना कहकर पंडिताईन रसोई मे भोजन बनाने चली गई व पंडित जी बच्चौ से बात करने लग गए.......।

ये अधिकांश ब्राह्मणो के घर की सच्ची कहानी है । हर ब्राह्मण अमिर नही होता ये बात समाज को समझ लेना चाहिए ।

आप सब का जवाब मित्रों मेरा विश्वास इन बातों में सच्चाई छुपी हुई है।

दोस्तों कुछ गलत लगा हो तो माफ करिए गा पर यही सच्चाई है एक सच्चा ब्राह्मण सच्चा पंडित आज भी एक पैसा शादी कराने का या पूजा कराने का नहीं मांगता है फिर हर चीज ब्राह्मणों से ही क्यों काटा जाता हैं ना तो उसे राशन मिलता है ना पढ़ने की कोई व्यवस्था हो पाती है हम तो कहते हैं गरीबों के लिए ही जो कुछ किया जाए किया जाए चाहे वह किसी जाति धर्म का हो।
⚜️ सनातन संस्कृति को बचाने के लिए आगे बढ़ो 💞
आपका दिन मंगलमय हो 🌹 ऊं नमः पार्वते पतेय शिव हर हर महादेव शम्भू 💞

30/07/2022

🙏🕉️🙏🏻क्या भगवान हमारे द्वारा चढ़ाया गया भोग खाते हैं ?
यदि खाते हैं, तो वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं हो जाती ?
और यदि नहीं खाते हैं, तो भोग लगाने का क्या लाभ ?

एक लड़के ने पाठ के बीच में अपने गुरु से यह प्रश्न किया।
गुरु ने तत्काल कोई उत्तर नहीं दिया।
वे पूर्ववत् पाठ पढ़ाते रहे
उस दिन उन्होंने पाठ के अन्त में एक श्लोक पढ़ाया:

पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥

पाठ पूरा होने के बाद गुरु ने शिष्यों से कहा कि वे पुस्तक देखकर श्लोक कंठस्थ कर लें।
एक घंटे बाद गुरु ने प्रश्न करने वाले शिष्य से पूछा कि उसे श्लोक कंठस्थ हुआ कि नहीं ? उस शिष्य ने पूरा श्लोक शुद्ध-शुद्ध गुरु को सुना दिया।
फिर भी गुरु ने सिर 'नहीं' में हिलाया, तो शिष्य ने कहा कि" वे चाहें, तो पुस्तक देख लें; श्लोक बिल्कुल शुद्ध है।”

गुरु ने पुस्तक देखते हुए कहा“ श्लोक तो पुस्तक में ही है, तो तुम्हारे दिमाग में कैसे चला गया? शिष्य कुछ भी उत्तर नहीं दे पाया।
तब गुरु ने कहा “ पुस्तक में जो श्लोक है, वह स्थूल रूप में है। तुमने जब श्लोक पढ़ा, तो वह सूक्ष्म रूप में तुम्हारे दिमाग में प्रवेश कर गया,
उसी सूक्ष्म रूप में वह तुम्हारे मस्तिष्क में रहता है। और जब तुमने इसको पढ़कर कंठस्थ कर लिया, तब भी पुस्तक के स्थूल रूप के श्लोक में कोई कमी नहीं आई।

इसी प्रकार पूरे विश्व में व्याप्त परमात्मा हमारे द्वारा चढ़ाए गए निवेदन को सूक्ष्म रूप में ग्रहण करते हैं,
और इससे स्थूल रूप के वस्तु में कोई कमी नहीं होती। उसी को हम *प्रसाद* के रूप में ग्रहण करते हैं।

शिष्य को उसके प्रश्न का उत्तर मिल गया।

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