
20/06/2025
🌱 “कौन है असली जनसेवक?” – एक गाँव की सच्ची सीख 🌱
हमारे गाँव मैं दो लोग थे – धीरज और सुमित। दोनों अपने आपको गाँव का नेता कहते थे, लेकिन दोनों की सोच, दोनों का तरीका और दोनों का जीवन एक-दूसरे से बिल्कुल अलग था।
धीरज बचपन से गाँव में ही रहा। जब गाँव में किसी के घर दुख आया, धीरज सबसे पहले वहाँ पहुँचा। जब खेतों में पानी की कमी हुई, धीरज ही था जो सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटता रहा। जब गाँव के स्कूल में कमरा टूट गया, तो धीरज ने दौड़-धूप करके नया कमरा बनवाया।
धीरज ने कभी अपने गाँव को नहीं छोड़ा। उसकी एक ही पहचान थी – “गाँव मेरा परिवार है, और इस परिवार का साथ कभी नहीं छोड़ूंगा।”
दूसरी ओर सुमित था। सुमित ने सालों पहले गाँव छोड़ दिया। अपने परिवार को लेकर शहर चला गया। गाँव का कोई सुख-दुख हो, कोई शादी-ब्याह हो, किसी के घर कोई मुसीबत हो – सुमित कभी नहीं आया।
हाँ, लेकिन जब चुनाव आता था, तो सुमित बड़ी-बड़ी बातें करने चला आता था। गाँव वालों से मीठे वादे करता, हवा में सपने दिखाता, और हर बार यही कहता – “मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ करूंगा।”
गाँव वालों ने एक दिन सुमित से सीधा सवाल किया –
“साल भर में कितने दिन तुम हमारे साथ रहते हो? जब हम तकलीफ में थे, तब तुम कहाँ थे?”
सुमित के पास कोई जवाब नहीं था। वो सिर्फ दूसरों पर इल्ज़ाम लगाता रहा।
गाँव वालों ने एक बात अपने मन में बिठा ली –
“हमें वह नेता नहीं चाहिए जो सिर्फ चुनाव में आए।
हमें वह जनसेवक चाहिए जो हर दिन, हर समय, हर सुख-दुख में हमारे साथ खड़ा रहे।”
🌟 क्योंकि सच्चा जनसेवक वो नहीं जो सिर्फ भाषण दे, सच्चा जनसेवक वो है जो गाँव की धूल में साथ चलता है।
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💬 गाँव वालों से एक सवाल जरूर पूछो:
“जो खुद सालों से गाँव में नहीं रहता, वो क्या हमारे दुख-सुख को सच में समझ सकता है?”
✅ जनसेवक वो नहीं जो सिर्फ चुनाव में दिखे।
✅ जनसेवक वो है जो साल भर गाँव में रहे, आपकी लड़ाई लड़े।
✅ चुनाव में वादे करने वालों से पूछो – अब तक क्या किया? गाँव में कब-कब आए?
अब समय है पहचान करने का –
कौन है सच्चा साथी, और कौन है चुनावी मेहमान।
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