18/04/2017
जीवन के *20* साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई *नोकरी* की खोज । ये नहीं वो , दूर नहीं पास । ऐसा करते करते *2 .. 3* नोकरियाँ छोड़ने एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई।
फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का *चेक*। वह *बैंक* में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले *शून्यों* का अंतहीन खेल। *2- 3* वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और *शून्य* बढ़ गए। उम्र *27* हो गयी।
और फिर *विवाह* हो गया। जीवन की *राम कहानी* शुरू हो गयी। शुरू के *2 .. 4* साल नर्म , गुलाबी, रसीले , सपनीले गुजरे । हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने। *पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए*।
और फिर *बच्चे* के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में *पालना* झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना - बैठना, खाना - पीना, लाड - दुलार ।
समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला।
*इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बाते- करना घूमना - फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला*।
*बच्चा* बड़ा होता गया। वो *बच्चे* में व्यस्त हो गयी, मैं अपने *काम* में । घर और गाडी की *क़िस्त*, बच्चे की जिम्मेदारी, शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में *शुन्य* बढाने की चिंता। उसने भी अपने आप काम में पूरी तरह झोंक दिया और मेने भी....
इतने में मैं *37* का हो गया। घर, गाडी, बैंक में *शुन्य*, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है ? पर वो है क्या समझ नहीं आया। उसकी चिड चिड बढती गयी, मैं उदासीन होने लगा।
इस बीच दिन बीतते गए। समय गुजरता गया। बच्चा बड़ा होता गया। उसका खुद का संसार तैयार होता गया। कब *10वि* *anniversary*आई और चली गयी पता ही नहीं चला। तब तक दोनों ही *40 42* के हो गए। बैंक में *शुन्य* बढ़ता ही गया।
एक नितांत एकांत क्षण में मुझे वो *गुजरे* दिन याद आये और मौका देख कर उस से कहा " अरे जरा यहाँ आओ, पास बैठो। चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं।"
उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा कि " *तुम्हे कुछ भी सूझता* *है यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है तुम्हे* *बातो की सूझ रही है*।"
कमर में पल्लू खोंस वो निकल गयी।
तो फिर आया *पैंतालिसवा* साल, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझने शुरू हो गयी।
बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक में *शुन्य* बढ़ रहे थे। देखते ही देखते उसका *कॉलेज* ख़त्म। वह अपने पैरो पे खड़