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सर्वोपरि प्रेमी शिव शंकर सर्वोत्तम प्रिये पार्वतीसर्वश्रेष्ठ पति परमेश्वर शिव सदा सुहागन पार्वती.🌼🚩आज श्री शिव और शक्ति ...
18/09/2023

सर्वोपरि प्रेमी शिव शंकर सर्वोत्तम प्रिये पार्वती
सर्वश्रेष्ठ पति परमेश्वर शिव सदा सुहागन पार्वती.🌼🚩

आज श्री शिव और शक्ति की आराधना के पावन पर्व, #हरतालिका_तीज व्रत की सभी मातृशक्ति को हार्दिक शुभकामनाएँ...

सभी के लिए आरोग्य, ऐश्वर्य, की मङ्गल कामनाओं के साथ ईश्वर आपके सभी मनोरथ पूर्ण करें। सृष्टि की संवाहक नारी शक्ति को नमन वंदन प्रणाम..!🙏🚩

ॐ नमः पार्वते पतये हर हर महादेव...!🙏

"रक्षाबंधन विशेष।येन बद्धो बलि राजा।अब क्या अर्पित करोगे राजन? ,सारी धरती नापने के बाद विश्वरूप भगवान ने मुस्कराते हुए र...
30/08/2023

"रक्षाबंधन विशेष।

येन बद्धो बलि राजा।

अब क्या अर्पित करोगे राजन? ,सारी धरती नापने के बाद विश्वरूप भगवान ने मुस्कराते हुए राजा बलि से पूछा।

जिसका सारा संसार है उसे क्या अर्पित किया जा सकता है भगवन, सब कुछ आपका आपको ही समर्पित है।, बलि ने हाथ जोड़ा।

तो क्या आपका वचन असत्य जाएगा? एक पग अभी बचा है उसे कहाँ रखूं? भगवान ने पुनः पूछा।

बलि का वचन असत्य कैसे जाएगा, भक्त के वचन की लाज तो स्वयं भक्तवत्सल भगवान की ही जिम्मेदारी है। मेरा सिर आपकी सेवा में है। कृपया अपना पग मेरे सिर पर रखें।, बलि ने अपना मस्तक प्रस्तुत कर दिया।

वामन ने अपना पैर धरती पर रख दिया और बोले, बस राजन तुम अहंकारमुक्त हुए। मैं आपकी सहायता के लिए आया था। बिना मनुष्य हुए मनुष्यों पर शासन करना पाप है। आज से तुम निष्पाप हुए, मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ, यदि आपके मन में कोई इच्छा हो तो वह कहो मुझसे।

बलि ने अपना माथा प्रभु के चरणों मे रख दिया और बोले, प्रभुता पाकर किसे मद नही हो जाता है भगवन, मैं राज्य तभी चला सकता हूँ जब आप मेरे साथ मेरे रक्षक बन कर रहें।

एवमस्तु कहकर भगवान प्रहरी के वेश में आ गए और राजा बलि के साथ पाताल को चले गए।

वैकुंठ में विराजमान लक्ष्मी जी को जब यह वृत्तांत पता चला तो वह सोच में पड़ गयीं कि अब प्रभु वैकुंठ कैसे आएं! अन्तः वह एक रक्षासूत्र लेकर राजा बलि के दरबार में उपस्थित हुईं और उन्होंने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें भाई बनाना चाहती हैं। बलि ने उनसे रक्षासूत्र बंधवा लिया और बहन से पूछा कि उसे क्या उपहार चाहिए? लक्ष्मी जी ने बलि से कहा कि कि मैं आपके उसी प्रहरी की पत्नी हूं उसके सुख-सौभाग्य और गृहस्थी की रक्षा करना भी बलि का भाई होने के नाते धर्म है अतः वह अपने रक्षक को मुक्त कर दें। बलि सब बात समझ गए और प्रभु को मुक्त कर उनके साथ वैकुण्ठ वास की सहमति दे दी, परंतु इसके साथ ही उन्होंने लक्ष्मीजी से आग्रह किया कि जब बहन-बहनोई उनके घर आ ही गए हैं तो कुछ मास और वहीं ठहर जाएं।

लक्ष्मीजी ने उनका आग्रह मान लिया और श्रावण पूर्णिमा (रक्षाबंधन) से कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि (धनतेरस) तक विष्णु और लक्ष्मीजी वहीं पाताल लोक में राजा बलि के यहां रहे। धनतेरस के बाद प्रभु जब लौटकर वैकुण्ठ को गए तो अगले दिन पूरे लोक में दीप-पर्व मनाया गया।

माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन से धनतेरस तक विष्णु लक्ष्मी संग राजा बलि के यहां रहते हैं। यही वह समय राजा बलि महाबलीपुरम वापस लौटते हैं। यही समय है जब केरल में ओणम मनाया जाता है जो महाबली के वापस आने का द्योतक है।

'येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: ,
तेन त्वाम् अभिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:।

और हां राखी का मुहूर्त आपके कुल पुरोहित बताएं, मां बताए, दादी या बाबा बताएं वही सही है। रक्षा- सूत्र बंधन किसी मुहूर्त का मोहताज नहीं है, मुहूर्त से ज्यादा महत्वपूर्ण भाव है।

15/08/2023
*अंतिम समय में व्यक्ति के मुंह में क्यों दिया जाता है तुलसी और गंगाजल*हिन्दू धर्म में गंगाजल और तुलसी का मिलन बहुत ही पव...
25/12/2022

*अंतिम समय में व्यक्ति के मुंह में क्यों दिया जाता है तुलसी और गंगाजल*

हिन्दू धर्म में गंगाजल और तुलसी का मिलन बहुत ही पवित्र माना जाता है। गंगा जहां शिव से संबंध रखती है वहीं तुलसी श्रीहरि विष्णु से। दुनिया के सभी जलों में सबसे पवित्र जल गंगा के जल को माना जाता है और तुलसी को सबसे पवित्र पौधा माना जाता है। मरते वक्त या मरने के बाद या किसी के प्राण तन से नहीं निकल रहे हैं तो उसके मुंह में तुसली के साथ गंगा जल डाला जाता है। ऐसा क्यूं करते हैं? आइये इस रहस्य को जानते हैं।।

1. मान्यता अनुसार कहते हैं कि मुंह में गंगाजल और तुलसी रखने से यम के दूत यानी यमदूत मृतक की आत्मा को सताते नहीं है।

2. मान्यता अनुसार गंगाजल और तुलसी रखने से तन से प्राणा आसानी से निकल जाते हैं और किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं होती है।

3. यह भी कहते हैं कि मरने वाला व्यक्ति भूखा और प्यासा नहीं मरे इसलिए उसके मुंह में तुलसी के साथ गंगाजल रखा जाता है। भूखा प्यासा व्यक्ति अतृप्त होकर भटकता रहता है।

4. तुलसी हमेशा भगवान व‌िष्णु के स‌िर पर शोभित होती हैं, मृत्यु के समय तुलसी पत्ता मुंह में डालने से व्यक्त‌ि को यमदंड का सामना नहीं करना पड़ता है।

5. गंगा को मोक्षदायिनी नदी भी कहा गया है इसीलिए ऐसी आम धारणा है कि मरते समय व्यक्ति को यह जल पिला दिया जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगा ही एक मात्र ऐसी नदी है जहां पर अमृत कुंभ की बूंदें दो जगह गिरी थी।

6. गंगाजल का पानी बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु के कारण कभी सड़ता नहीं है। यदि किसी को गंगा जल पिला दिया जाए तो यह जीवाणु उसके शरीर में चला जाएगा और शरीर के भीतर गंदगी और बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं को यह नष्ट कर देगा इसीलिए गंगाजल मुंह में डाला जाता है। गंगाजल में कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है। ऐसा भी मान्यता है कि कभी इसे पीने से कोई मरता हुआ व्यक्ति पुन: जीने की राह पर निकल पड़े। तुलसी का पत्ता भी व्यक्ति में जिवेषणा का संचार करता है।।

7. गंगाजल में प्राणवायु की प्रचुरता बनाए रखने की अदभुत क्षमता है। इस कारण मरते हुए व्यक्ति को गंगाजल पिलाया जाता है। गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है।

8. तुलसी और गंगाजल के साथ मृत्यु के समय व्यक्ति के मुंह में सोने का टुकड़ा रखने का भी प्रचलन है।। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

9. दूषित पानी में तुलसी की कुछ ताजी पत्तियां डालने से पानी का शुद्धिकरण किया जा सकता है।। मरने वालों को तुलसी खिलाने से उसके शरीर का शुद्धीकरण हो जाता है और वह अच्छा महसूस करता है।

10. तुलसी एक औषधि भी है। मरते समय तुलसी का पत्ता मुंह में रखने से प्राण त्यागने में कष्ट नहीं होता है क्योंकि इससे सात्विक भाव और निर्भिकता का भाव जन्मता है।

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