30/08/2023
"रक्षाबंधन विशेष।
येन बद्धो बलि राजा।
अब क्या अर्पित करोगे राजन? ,सारी धरती नापने के बाद विश्वरूप भगवान ने मुस्कराते हुए राजा बलि से पूछा।
जिसका सारा संसार है उसे क्या अर्पित किया जा सकता है भगवन, सब कुछ आपका आपको ही समर्पित है।, बलि ने हाथ जोड़ा।
तो क्या आपका वचन असत्य जाएगा? एक पग अभी बचा है उसे कहाँ रखूं? भगवान ने पुनः पूछा।
बलि का वचन असत्य कैसे जाएगा, भक्त के वचन की लाज तो स्वयं भक्तवत्सल भगवान की ही जिम्मेदारी है। मेरा सिर आपकी सेवा में है। कृपया अपना पग मेरे सिर पर रखें।, बलि ने अपना मस्तक प्रस्तुत कर दिया।
वामन ने अपना पैर धरती पर रख दिया और बोले, बस राजन तुम अहंकारमुक्त हुए। मैं आपकी सहायता के लिए आया था। बिना मनुष्य हुए मनुष्यों पर शासन करना पाप है। आज से तुम निष्पाप हुए, मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ, यदि आपके मन में कोई इच्छा हो तो वह कहो मुझसे।
बलि ने अपना माथा प्रभु के चरणों मे रख दिया और बोले, प्रभुता पाकर किसे मद नही हो जाता है भगवन, मैं राज्य तभी चला सकता हूँ जब आप मेरे साथ मेरे रक्षक बन कर रहें।
एवमस्तु कहकर भगवान प्रहरी के वेश में आ गए और राजा बलि के साथ पाताल को चले गए।
वैकुंठ में विराजमान लक्ष्मी जी को जब यह वृत्तांत पता चला तो वह सोच में पड़ गयीं कि अब प्रभु वैकुंठ कैसे आएं! अन्तः वह एक रक्षासूत्र लेकर राजा बलि के दरबार में उपस्थित हुईं और उन्होंने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें भाई बनाना चाहती हैं। बलि ने उनसे रक्षासूत्र बंधवा लिया और बहन से पूछा कि उसे क्या उपहार चाहिए? लक्ष्मी जी ने बलि से कहा कि कि मैं आपके उसी प्रहरी की पत्नी हूं उसके सुख-सौभाग्य और गृहस्थी की रक्षा करना भी बलि का भाई होने के नाते धर्म है अतः वह अपने रक्षक को मुक्त कर दें। बलि सब बात समझ गए और प्रभु को मुक्त कर उनके साथ वैकुण्ठ वास की सहमति दे दी, परंतु इसके साथ ही उन्होंने लक्ष्मीजी से आग्रह किया कि जब बहन-बहनोई उनके घर आ ही गए हैं तो कुछ मास और वहीं ठहर जाएं।
लक्ष्मीजी ने उनका आग्रह मान लिया और श्रावण पूर्णिमा (रक्षाबंधन) से कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि (धनतेरस) तक विष्णु और लक्ष्मीजी वहीं पाताल लोक में राजा बलि के यहां रहे। धनतेरस के बाद प्रभु जब लौटकर वैकुण्ठ को गए तो अगले दिन पूरे लोक में दीप-पर्व मनाया गया।
माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन से धनतेरस तक विष्णु लक्ष्मी संग राजा बलि के यहां रहते हैं। यही वह समय राजा बलि महाबलीपुरम वापस लौटते हैं। यही समय है जब केरल में ओणम मनाया जाता है जो महाबली के वापस आने का द्योतक है।
'येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: ,
तेन त्वाम् अभिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:।
और हां राखी का मुहूर्त आपके कुल पुरोहित बताएं, मां बताए, दादी या बाबा बताएं वही सही है। रक्षा- सूत्र बंधन किसी मुहूर्त का मोहताज नहीं है, मुहूर्त से ज्यादा महत्वपूर्ण भाव है।