26/06/2024
आज ब्लैक एंड वाइट ब्रॉडकास्टर चैनल के माध्यम से उदय सिंह पठानिया जी ने युवाओं की बेरोजगारी का मुद्दा उठाया। बात किसी युवा अभ्यर्थी के कमेंट के इर्द गिर्द थी,, जिसने JOA 817 के परिणाम के इंतजार में निराशा से भरा हुआ एक कमेंट लिख दिया था। जिसमें उन्होंने लिखा कि "जब तक यह सिस्टम JOA 817 का परिणाम निकाले शायद तब तक वे इस दुनिया में न रहे, इसलिए रोल नंबर ABC लिख रहा हूँ देखिएगा कि मेरी मेहनत रंग लाई या नहीं" यह टिपणी बेरोजगार युवाओं की मनोस्थिति को बताती है। सरकारें कोई भी रही हो,, वक्त से भर्तियां नहीं आती। वेकैंसी आये तो एग्जाम नहीं कराए जाते। Exam हो जाये तो यह डर सताए रहता है कि पेपर लीक जैसा कुछ न हुआ हो,, यदि हो गया तो एग्जाम रद्द कर दिया जाता। सब बाधाओं से पार पाकर यदि सब ठीक भी रहा तो समय से परिणाम नहीं आते। यह भी डर रहता कि कोई कोर्ट में स्टे लगाकर प्रक्रिया को लंबा न खींच ले।
युवाओं की उम्र निकलती जा रही है। कुछ युवाओं की प्रायोरिटी रहती है कि पहले अपने पैरों पर खड़ा हो जाये फिर शादी की सोचेंगे। ऐसे में टिक-टिक करती घड़ी की सुई उनपर और दबाव डालती है। दबाव इस बात का कि कुछ हो नहीं पा रहा,, अब तक केवल पढ़ाई पर समय दिया स्किल कोई सीखी नहीं। ऐसे में पढ़कर भी कुछ हो नहीं पा रहा। बढ़ती उम्र के साथ घरवाले अलग से शादी व अन्य तरह का दबाव डालते हैं।
युवा करें तो करें क्या? कुछ अपने रिजल्ट के मुद्दे पर लड़ रहे कुछ वेकैंसी पर... कुछ के लिए अलग मुद्दे हैं। हर अलग मुद्दे के साथ वे भी बंटे हुए हैं। एक मंच पर कोई इकट्ठा हो नहीं पा रहा। सब बंटे हुए हैं... अपने-2 हितों की लड़ाई में... ऐसे में आंदोलन भी खड़ा कैसे हो पायेगा। दूसरी ओर जिस संजीदगी से सरकारों को काम करना चाहिए वो भी हो नहीं पा रहा।।
हर युवा सरकारी नौकरी तो नहीं ले सकता लेकिन सरकार को बेरोजगारी जैसे मुद्दे से लड़ने के लिए समाधान तो निकालने ही होंगे। मनाली जैसे क्षेत्र में अगर हम बेरोजगारी की बात करें तो शायद वहां के बच्चों को उतना प्रभाव नहीं पड़ता। क्योंकि एक तो वे बागवानी और दूसरा टूरिस्ट हॉट स्पॉट होने के कारण वहां पैसे कमाना और अपना कोई काम शुरू करना कोई मुश्किल काम नहीं है। वैसे ही हिमाचल में कई जगह ऐसी है जहां यदि काम किया जाए तो वहां के युवा केवल सरकारी नौकरियों के भरोसे नहीं रहेंगे।
अपनी चुहार घाटी की बात करूं तो यह घाटी बागवानी, कृषि व टूरिज्म के लिहाज से बहुत सामर्थ्य रखती है। लेकिन अपने पूरे पोटेंशियल पर अभी भी यह घाटी काम नहीं कर पा रही। इसका एक मुख्य कारण है यहां जमीनों का बंटवारा इस तरह से है कि किसी एक व्यक्ति की जमीन एक साथ नहीं है। एक छोटा सा खेत यहां है तो दूसरा कहीं दूर जाकर होगा। खेतों के बंटवारे पत्थर की सिउँ डालकर किया गया है। खेत भी इतने छोटे-2 कि मुश्किल से एक कमरा भी नहीं बन सकता। ऐसे में यहां के लोगों के हाथ कुछ करने से पहले ही कट जाते हैं। क्योंकि प्रेम भाव से यदि आपस में खेत बदला दिए जाए तो ठीक है। अन्यथा किसी का कुछ नहीं बन पाता। और समाज मे एक दूसरे को बढ़ता देख द्वेष भावना इतनी ज्यादा हो गयी है कि कोई किसी को बढ़ता देख नहीं पाता। ऐसे में खेत आपस मे बदलना भी असंभव काम लगता है।
यदि सरकार ऐसी जगह दोबारा निशानदेही कर,, जमीनों को फिर से 2,3 प्लॉट बनाकर बाटें तो मुझे लगता है कि इससे वे इस क्षेत्र के लोगों को इतनी बड़ी शक्ति दे देंगे कि वे स्वयं से ही स्वरोजगार के साधन पैदा कर देंगे। युवाओं को केवल सरकारी नौकरी पर आश्रित रहने की जरूरत ही नहीं होगी। वे अपना कोई बिज़नेस कर सकते हैं। अपने नए इनोवेटिव ideas को इम्प्लीमेंट कर सकते हैं।
यह होना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह अब सामाजिक समस्या बनकर भी उभर रही है। छोटे-2 खेत बिखरे होने के कारण लोगों में अब फसलों के पहरे से जुड़ी समस्याएं भी उत्तपन्न होने लगी हैं। कुछ ऐसे लोग जिन्होंने कृषि के अलावा अन्य तरह से कमाई के साधन उत्तपन्न किये हैं,, कुछ ऐसे हैं जो जमीनें छोड़कर बाहर चले गए हैं,, कुछ बीमारी के चलते कुछ बुढ़ापे के चलते ,,, जमीनें बीज नहीं पाते। और जाहिर है जब कुछ बीज नहीं रहे तो पहरेदारी भी नहीं करेंगे। ऐसे में इकट्ठा जमीन होने के कारण जो जमीनें बीजते हैं उनमें पहरेदारी का भार बढ़ जाता है। अब इसमें दोनों पक्ष अपनी जगह सही है। लेकिन यह समस्या अब गांव गांव में लड़ाई का मुद्दा बन रही है। लोगों के आपसी रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं। मतभेदों को मनभेदों में बदला जा रहा है।
ऐसे में इस मुद्दे पर यदि सरकार गम्भीरता से काम करें तो इससे चुहार घाटी में युवाओं का सरकारी रोजगार पर डिपेंडेंसी खत्म हो जाएगी। टूरिस्ट हिल स्टेशन होने के कारण वे अपना काम शुरू कर पाएंगे। इसके अलावा जमीन एक जगह प्लॉट होने के कारण वे बगीचे,, या अन्य तरह की कैश क्रॉप या काम शुरू कर सकते हैं। जिसमें उन्हें अड़चने नहीं आएगी। यहां के MLA व पंचायत बॉडी को इस बारे सोचकर सरकार से पुरजोर मांग उठाने की जरूरत है। इसमें सभी का भला निहित है। एक ही काम से कई तरह की समस्याएं हल हो सकती है।
जरा सोचकर देखिएगा,, जो बातें मैंने कही हैं क्या वे सही है या नहीं। क्या हमारे युवाओं के आधे सपने इसी बात से खत्म नहीं जो जाते कि उनके पास पर्याप्त जमीन नहीं है। है तो वह बिखरी हुई है जहां वे अपनी मर्जी की न तो फसल बीज सकते हैं न ही कोई अन्य काम कर सकते हैं। ऐसे में यदि कुल जमीनों को 2,3 प्लॉट बनाकर बांटा जाए तो इससे उनमें स्वतंत्रता आएगी,,, अन्यथा न तो किसी गरीब के पास इतना पैसा होता है कि वे पहले जमीन खरीदकर प्लॉट बनाए फिर उस प्लॉट पर आगे कोई काम करें। अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दीजिएगा।